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Hindi Steno Test 44 (Hindi)
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लोकसभा चुनाव के दो चरणों का मतदान होने के उपरांत यह और स्पष्ट है कि भाजपा के तमाम प्रत्याशी अपनी जीत के लिए प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और छवि पर अधिक आश्रित हैं। उनका अपना कामकाज संतोषजनक नहीं। इसके अलावा स्थानीय नेताओं एवं कार्यकताओं पर उनकी ऐसी पकड़ भी नहीं जिसके बलबूते वे भाजपा समर्थकों में उत्साह का संचार कर सकें। इस पर आश्चर्य नहीं कि इस बार चुनावों में वैसा उत्साह नहीं दिख रहा जैसे पिछले आम चुनावों में दिखता था। न तो भाजपा खेमे में उत्साह देखने को मिल रहा है और न ही विपक्षी खेमे में। मतदान के दोनों चरणों में पिछली बार के मुकाबले मतदान के कम प्रतिशत के लिए इस उत्साहहीनता को जिम्मेदार माना जा रहा है। इसके अलावा एक कारण यह भी माना जा रहा कि जहां भाजपा के नेतृत्व वाले राजग के समर्थक यह मानकर चल रहे हैं कि मोदी तो फिर से सत्ता में आ ही रहे हैं वहीं कांग्रेस के नेतृत्व वाले आइएनडीआइए के समर्थक यह समझ रहे हैं कि इस गठबंधन के लिए सत्ता हासिल करना कठिन है। इस बार पहले दो चरणों में मतदान का प्रतिशत पिछले लोकसभा चुनावों के मुकाबले कम रहा। मतदान प्रतिशत में कमी के मूल कारण जो भी हों, पिछले दो चरणों में कम मतदान के आधार पर सत्तापक्ष और विपक्ष को फायदा या नुकसान होने के जो निष्कर्ष निकाले जा रहे, उनका कोई ठोस आधार नहीं, क्योंकि कोई भी निश्चित तौर पर यह नहीं कह सकता कि किस पक्ष के मतदाताओं ने मतदान के लिए कम उत्साह दिखाया। कम मतदान से चाहे जिसे लाभ या हानि हो, इससे इन्कार नहीं कि भाजपा और उसके सहयोगी दलों के तमाम प्रत्याशी अपने कामकाज के बजाय मोदी की साख के भरोसे अधिक हैं। संभवत: मोदी भी यह जान रहे हैं और इसीलिए वे धुआंधार प्रचार कर रहे हैं। चूंकि दक्षिण भारत के एक बड़े हिस्से में मतदान हो चुका है, इसलिए उत्तर भारत पर निगाह अधिक है। पिछली बार भाजपा ने उत्तर भारत में ही शानदार सफलता पाई थी। इसी उत्तर भारत में एक बड़ी संख्या में भाजपा के सांसद फिर से चुनाव मैदान में हैं। इनमें से अनेक को सत्ता विरोधी रुझान का सामना करना पड़ रहा है। कई जगह उनके कामकाज से जनता संतुष्ट नहीं। लगता है ये सांसद यही मानकर चलते रहे कि इस बार भी मोदी नाम के सहारे उनकी नैया पार लग जाएगी। आखिर ऐसा कब तक चलेगा? इस पर हर दल को विचार करना चाहिए कि कैसे वही जनप्रतिनिधि चुनाव मैदान में फिर से उतरें, जो अपने क्षेत्र की जनता की समस्याओं का समाधान करने के लिए तत्पर रहें। जिताऊ उम्मीदवार के नाम पर जनता की समस्याओं से बेपरवाह या दलबदलू नेताओं को चुनाव मैदान में नहीं उतारा जाना चाहिए। इसी के साथ जनता की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह जाति और मजहब के नाम पर अयोग्य, दागी और दलबदलू नेताओं को चुनाव जिताना बंद करे।
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